26 दिसंबर की रात भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने दिल्ली के एम्स अस्पताल में अंतिम सांस ली। 2004 से 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह को भारत में आर्थिक उदारीकरण का जनक माना जाता है। 1991 में जब उन्होंने वित्त मंत्री का कार्यभार संभाला, देश गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा था। मात्र 89 करोड़ डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार बचा था, जो केवल दो हफ्ते के आयात के लिए पर्याप्त था। ऐसे कठिन समय में उन्होंने साहसिक फैसले लेकर देश को आर्थिक मजबूती की ओर अग्रसर किया।

आर्थिक संकट के दौरान लिए कड़े फैसले

तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने कठिन परिस्थिति में मनमोहन सिंह को वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी। देश की गिरती आर्थिक स्थिति को संभालने के लिए उन्होंने कई कठोर निर्णय लिए। स्थिति इतनी गंभीर थी कि आयात खर्च पूरा करने के लिए देश को अपना सोना विदेश में गिरवी रखना पड़ा। वित्त मंत्री के रूप में उन्होंने 1991 में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की। उन्होंने सरकारी नियंत्रण कम कर भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक बाजार के लिए खोल दिया।

लाइसेंस राज का किया अंत

डॉ. सिंह ने विदेशी निवेश (FDI) को बढ़ावा देने और लाइसेंस राज को खत्म करने जैसे ऐतिहासिक कदम उठाए। उन्होंने आयात-निर्यात के नियमों को सरल बनाया, जिससे विदेशी निवेशकों का भरोसा बढ़ा। उनके सुधारों का परिणाम जल्द ही दिखाई देने लगा और दिसंबर 1991 में भारत सरकार ने विदेशों में गिरवी रखे गए सोने को वापस मंगवाया।

प्रधानमंत्री के रूप में ऐतिहासिक योगदान

प्रधानमंत्री बनने के बाद मनमोहन सिंह ने मनरेगा और आधार जैसी योजनाओं की शुरुआत की। ये योजनाएं सामाजिक और आर्थिक विकास में मील का पत्थर साबित हुईं। उनका 1991 का बजट भाषण, जिसमें उन्होंने भारत के जागने और आर्थिक शक्ति बनने की बात कही, आज भी ऐतिहासिक माना जाता है। उनके दूरदर्शी नेतृत्व ने भारतीय अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी और देश को वैश्विक मंच पर मजबूती से खड़ा किया।

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