दुनियाभर में तबले को नई पहचान देने वाले महान तबलावादक उस्ताद जाकिर हुसैन अब हमारे बीच नहीं रहे। 73 वर्ष की आयु में उन्होंने अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में अंतिम सांस ली। उस्ताद जाकिर हुसैन ने बचपन से ही संगीत और तबला वादन को अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाया था। उनकी कला ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को विश्व मंच पर गौरवान्वित किया।
ताजमहल चाय को 'वाह ताज' बनाने वाले जाकिर हुसैन
उस्ताद जाकिर हुसैन केवल संगीत के क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि विज्ञापन जगत में भी एक प्रतिष्ठित चेहरा रहे। ताजमहल चाय का मशहूर 'वाह ताज' विज्ञापन उनकी ही वजह से अमर हो गया। 1966 में भारतीय बाजार में विदेशी कंपनी के रूप में शुरू हुई ताजमहल चाय को अपनी जड़ों से जोड़ने के लिए भारतीय संस्कृति की झलक दिखाने की जरूरत महसूस हुई। तब विज्ञापन निर्माताओं ने जाकिर हुसैन को ब्रांड एंबेसडर के रूप में चुना।
आगरा में ताजमहल के सामने फिल्माए गए इस विज्ञापन में जाकिर हुसैन का तबला वादन और उनकी संवाद अदायगी ने लोगों के दिलों पर गहरी छाप छोड़ी। उनका "वाह, उस्ताद वाह!" और "अरे हुज़ूर, वाह ताज बोलिए!" आज भी लोगों की जुबान पर है। इस विज्ञापन ने न केवल कंपनी की ब्रांड वैल्यू को बढ़ाया, बल्कि ताजमहल चाय की बिक्री को भी नई ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया।
5 रुपये से शुरुआत कर 85 करोड़ की संपत्ति बनाई
जाकिर हुसैन का सफर एक प्रेरणा है। अपनी पहली प्रस्तुति के लिए उन्हें मात्र 5 रुपये मिले थे, लेकिन अपनी कला के दम पर उन्होंने एक शो के लिए 8 से 10 लाख रुपये तक की फीस हासिल की। अपने जीवनकाल में उन्होंने लगभग 10 मिलियन डॉलर (करीब 85 करोड़ रुपये) की संपत्ति अर्जित की। वे अपने पीछे आलीशान घर, लग्ज़री गाड़ियां और बड़ा बैंक बैलेंस छोड़ गए हैं।
उस्ताद जाकिर हुसैन ने न केवल शास्त्रीय संगीत को नया आयाम दिया, बल्कि इसे दुनियाभर में पहुंचाया। उनका संगीत से लगाव ही उनकी सफलता की वजह बना। उन्होंने तबले को नई पहचान दी और यह साबित किया कि भारतीय शास्त्रीय संगीत की ध्वनि किसी भी मंच पर गूंज सकती है। आज उनकी कला और योगदान को पूरा विश्व सम्मान के साथ याद कर रहा है।
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