2024 भारतीय रुपये के लिए मुश्किलों भरा साल साबित हुआ। अमेरिकी Dollar की मजबूती और वैश्विक बाजारों में अनिश्चितता के कारण रुपया लगातार दबाव में रहा। जनवरी की शुरुआत में 83.19 रुपये प्रति Dollar से शुरू हुआ रुपया दिसंबर के अंत तक तीन प्रतिशत टूटकर 85.59 रुपये प्रति डॉलर पर आ गया। यह साल रुपये के लिए केवल चुनौतियों और गिरावट का गवाह नहीं बना, बल्कि कई आर्थिक कारकों ने इसकी राह और मुश्किल बना दी।
Dollar का बढ़ता वर्चस्व
2024 में अमेरिकी डॉलर ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में अपनी पकड़ और मजबूत की। रूस-यूक्रेन युद्ध, पश्चिम एशिया में तनाव, और लाल सागर में व्यापार बाधाओं ने वैश्विक व्यापार पर गहरा प्रभाव डाला। इन घटनाओं का असर भारतीय रुपये पर भी पड़ा, जो अपने निचले स्तर पर पहुंच गया।
बढ़ते व्यापार घाटे का प्रभाव
भारत की आयात निर्भरता, खासकर कच्चे तेल पर, ने रुपये पर दबाव बढ़ाया। व्यापार घाटे में वृद्धि के कारण Dollar की मांग और बढ़ गई, जिससे रुपया कमजोर होता चला गया। आरबीआई ने स्थिति संभालने की कोशिश में विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप किया, लेकिन गिरावट पर लगाम लगाने में यह प्रयास पूरी तरह सफल नहीं हो सका।
येन और यूरो में मजबूती
हालांकि डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर रहा, लेकिन अन्य वैश्विक मुद्राओं, जैसे जापानी येन और यूरो, के मुकाबले इसकी स्थिति बेहतर रही। जापानी येन के मुकाबले रुपया 8.7 प्रतिशत मजबूत हुआ और 100 येन की कीमत 58.99 रुपये से घटकर 54.26 रुपये पर आ गई। यूरो के मुकाबले भी 27 अगस्त से 27 दिसंबर तक पांच प्रतिशत का सुधार देखने को मिला।
2025 से उम्मीदें
2024 में कमजोर प्रदर्शन के बावजूद, विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले वर्ष में रुपया अपनी स्थिति सुधार सकता है। यदि वैश्विक तनाव कम होता है और डॉलर का वर्चस्व घटता है, तो 2025 भारतीय रुपये के लिए बेहतर संभावनाओं का द्वार खोल सकता है।
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