देश में एटीएम की संख्या में पांच साल बाद गिरावट दर्ज की गई है। सरकार ने संसद में इस बात की जानकारी दी। आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक, महानगरों से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक सभी जगह एटीएम की संख्या में कमी आई है।
एटीएम की संख्या में 1% से ज्यादा की गिरावट
सितंबर 2024 के अंत तक देश में कुल 2,55,078 एटीएम थे, जो एक साल पहले 2,57,940 थे। इस तरह एटीएम की संख्या में 1% से थोड़ी अधिक गिरावट हुई। सबसे ज्यादा कमी ग्रामीण क्षेत्रों में देखी गई, जहां यह संख्या 2.2% घटकर 54,186 रह गई। महानगरों में एटीएम की संख्या में 1.6% की गिरावट दर्ज की गई, जिससे सितंबर 2024 के अंत तक यह संख्या 67,224 पर पहुंच गई।
वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने लोकसभा में बताया कि सरकारी बैंकों ने एटीएम बंद होने के कई कारण बताए हैं। इनमें बैंकों का एकीकरण, एटीएम का कम उपयोग, आर्थिक व्यावहारिकता की कमी और एटीएम का अन्य स्थानों पर स्थानांतरण शामिल हैं।
डिजिटल भुगतान का बढ़ता प्रभाव
बैंकों और विशेषज्ञों का मानना है कि UPI और कार्ड पेमेंट के बढ़ते चलन ने नकद लेनदेन को कम कर दिया है। उपभोक्ता अब सब्जियों से लेकर बड़ी खरीदारी तक हर जगह यूपीआई का उपयोग कर रहे हैं। इससे एटीएम की जरूरत कम हो गई है और यह बैंकों के लिए आर्थिक दृष्टि से व्यवहारिक नहीं रह गए हैं। डिजिटल लेनदेन में बढ़ती आसानी और उपयोगकर्ताओं की बदलती प्राथमिकताओं ने एटीएम के महत्व को काफी हद तक कम कर दिया है।
UPI का बढ़ता जलवा
पंकज चौधरी ने बताया कि पिछले नौ वर्षों में भारत ने डिजिटल भुगतान और वित्तीय समावेशन में बड़ी प्रगति की है। जन धन योजना, मोबाइल इंटरनेट और UPI के प्रसार ने इस बदलाव को बढ़ावा दिया है। 2018-19 में UPI लेनदेन मात्र 535 करोड़ था, जो 2023-24 में बढ़कर 13,113 करोड़ हो गया। वित्त वर्ष 2024-25 (सितंबर तक) में 8,566 करोड़ ट्रांजैक्शन के जरिए 122 लाख करोड़ रुपये का लेनदेन दर्ज हुआ है।
डिजिटल क्रांति और एटीएम का भविष्य
UPI के जरिए छोटे-बड़े हर तरह के भुगतान में बढ़ती सहूलियत ने एटीएम की उपयोगिता को कम कर दिया है। डिजिटल क्रांति के साथ उपभोक्ताओं का झुकाव ऑनलाइन भुगतान की तरफ बढ़ रहा है। ऐसे में बैंकों के लिए अब एटीएम को बनाए रखना आर्थिक दृष्टि से चुनौती बनता जा रहा है। आने वाले समय में डिजिटल भुगतान की तकनीकों का विस्तार और अधिक होगा, जिससे नकद लेनदेन और एटीएम पर निर्भरता और घट सकती है।
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