जानबूझकर लोन न चुकाने वाले उधारकर्ताओं पर अब कड़ी कार्रवाई का रास्ता साफ हो गया है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने बैंकों को निर्देश दिया है कि वे ऐसे कर्जदारों को विलफुल डिफॉल्टर घोषित करने में देरी न करें। RBI के इस कदम का उद्देश्य बैंकों की लोन रिकवरी प्रक्रिया को तेज करना और डिफॉल्टरों पर सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करना है।
विलफुल डिफॉल्टर घोषित करने की प्रक्रिया में तेजी
RBI ने बैंकों से कहा है कि जो लोग लोन चुकाने में सक्षम होते हुए भी जानबूझकर इसका भुगतान नहीं कर रहे हैं, उन्हें जल्द से जल्द विलफुल डिफॉल्टर घोषित किया जाए। बैंकों ने इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए अतिरिक्त समय मांगा था, जिसे RBI ने खारिज कर दिया।
रिपोर्ट्स के अनुसार, आरबीआई ने बैंकों को स्पष्ट किया है कि विलफुल डिफॉल्टर को वर्गीकृत करने का फैसला छह महीने के भीतर होना चाहिए। विलफुल डिफॉल्टर वह होता है, जिसके पास लोन चुकाने के पर्याप्त संसाधन होते हैं, लेकिन वह जानबूझकर ईएमआई का भुगतान नहीं करता।
एनपीए और रिकवरी प्रक्रिया
यदि कोई कर्जदार लगातार तीन महीनों (90 दिनों) तक ईएमआई का भुगतान नहीं करता है, तो उसका खाता एनपीए (गैर-निष्पादित परिसंपत्ति) में बदल दिया जाता है। इसके बाद बैंक रिकवरी की प्रक्रिया शुरू करता है, जिसमें ग्राहक को अपनी स्थिति स्पष्ट करने का अवसर दिया जाता है।
अगर बैंक यह निष्कर्ष निकालता है कि कर्जदार जानबूझकर लोन नहीं चुका रहा है, तो उसे विलफुल डिफॉल्टर घोषित करने की प्रक्रिया शुरू की जाती है। इस प्रक्रिया में भी कर्जदार को व्यक्तिगत सुनवाई का मौका दिया जाता है, ताकि वह अपनी बात रख सके।-
RBI के मुताबिक गारंटर भी जिम्मेदार
अगर मुख्य कर्जदार लोन चुकाने में नाकाम रहता है, तो गारंटर से भी रकम की वसूली की जा सकती है। आरबीआई के मास्टर सर्कुलर (जून 2024) के अनुसार, बैंक विलफुल डिफॉल्टर की पहचान सार्वजनिक कर सकता है, जिसमें उसकी तस्वीर प्रकाशित करना भी शामिल है।
आरबीआई का मानना है कि विलफुल डिफॉल्टरों को अतिरिक्त समय देने से उनकी संपत्तियों के मूल्य में गिरावट आ सकती है, जिससे लोन रिकवरी मुश्किल हो जाती है। इस सख्ती का उद्देश्य बैंकों की वित्तीय सेहत सुधारना और उधारकर्ताओं को अनुशासित करना है।
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