भारत के कोहिनूर कहे जाने वाले रतन टाटा (Ratan Tata) आज पहले ही हमारे बीच मौजूद नहीं है लेकिन उन्होंने जो काम किया है और जिस तरह से देश और विदेशों में अपना नाम रोशन किया, वह हमेशा हर किसी के दिल में रहेंगे.
आज जिस टाटा ग्रुप (Tata Group) को बच्चा-बच्चा जानता है, उसे इतना ज्यादा लोकप्रिय बनाने में रतन टाटा (Ratan Tata) का बहुत बड़ा योगदान रहा क्योंकि यहां तक पहुंचने का सफर बिल्कुल भी आसान नहीं था.
एक वक्त था जब फैक्ट्री की भट्ठी में चूना पत्थर तक डालने का काम उन्हें करना पड़ा था, पर जिंदगी ने ऐसी करवट ली की पूरी दुनिया उनकी मुरीद हो गई.
Ratan Tata: टाटा ग्रुप के लिए बने मसीहा
इतनी बड़ी कंपनी होने के बावजूद भी रतन टाटा ने एक सामान्य कर्मचारियों के रूप में अपनी कंपनी से शुरुआत की और बिजनेस की सभी बारीकियां को सीखा. उन्होंने टाटा स्टील के प्लांट में चूना पत्थर को भट्ठियों में डालने जैसा काम भी किया है जिस पर विश्वास कर पाना शायद बहुत मुश्किल है.
फिर जाकर 1991 में उन्हें टाटा सन और टाटा ग्रुप के अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई और उसके बाद टाटा ग्रुप के ऊंचाइयों पर पहुंचने का सिलसिला शुरू हुआ. रतन टाटा (Ratan Tata) ने अध्यक्ष रहते हुए टाटा ग्रुप ने टेटली टी, जगुआर लैंड रोवर और कोरस को टेकओवर किया.
इसके बाद टाटा का नाम हर घर में मशहूर हो गया और फिर घर का नमक हो, मसाले हो, पानी हो, चाय- कॉफी, घड़ी, ज्वेलरी या फिर लग्जरी कार, बस, ट्रक और हवाई जहाज हर जगह टाटा नजर आने लगा.
मिल चुका है ये सम्मान
पहले चार पहिए वाहन के लिए भारत को दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता था लेकिन वो रतन टाटा (Ratan Tata) ही थे, जिन्होंने भारत में पहली बार पूर्ण रूप से बनी कार का उत्पादन शुरू किया और जिसका नाम था टाटा इंडिका जिन्होंने भारत का नाम पूरी दुनिया में इस कदर रोशन किया कि उन्हें साल 2000 में पद्मभूषण और 2008 में सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया.
रतन टाटा को हमेशा उनकी दरिया दिली के लिए पहचाना जाता था, जो हमेशा अपने कर्मचारियों के साथ हर मुश्किल परिस्थिति में खड़े रहते थे.
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