देश के संविधान को अपनाए जाने की 75वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में मंगलवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने नई दिल्ली में संविधान सदन के सेंट्रल हॉल में आयोजित एक ऐतिहासिक समारोह में 75 रुपये का स्मारक सिक्का और डाक टिकट जारी किया। इस मौके पर उन्होंने संविधान सभा और देश के लोकतांत्रिक मूल्यों को सम्मानित करते हुए संविधान के महत्व और आदर्शों पर जोर दिया।

संविधान दिवस का महत्व

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित करते हुए संविधान को एक "जीवंत और प्रगतिशील दस्तावेज" बताया। उन्होंने संविधान की पहली संस्कृत प्रति और मैथिली संस्करण का भी अनावरण किया।

राष्ट्रपति ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि संविधान दिवस का यह अवसर ऐतिहासिक है, जब हमें 75 साल पहले संविधान को अपनाने की यात्रा को याद करना चाहिए। उन्होंने संविधान निर्माण में संविधान सभा की 15 महिला सदस्यों के योगदान को भी विशेष रूप से रेखांकित किया और इसे भारतीय लोकतंत्र का गौरव बताया।

संविधान: देश का पवित्र ग्रंथ

अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने संविधान को देश का सबसे पवित्र ग्रंथ बताया। उन्होंने कहा कि यह हमारे लोकतांत्रिक गणतंत्र की मजबूत आधारशिला है और सभी भारतीयों के स्वाभिमान को सुनिश्चित करता है। राष्ट्रपति ने कहा कि संविधान-सभा ने देश की विविधता को स्वर दिया और सभी प्रांतों तथा क्षेत्रों के प्रतिनिधित्व ने अखिल भारतीय चेतना को मजबूती प्रदान की।

उन्होंने यह भी कहा कि संविधान के आदर्शों को आत्मसात करना सभी नागरिकों का कर्तव्य है। उन्होंने 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए संवैधानिक आदर्शों का पालन करने और अपने मौलिक कर्तव्यों पर जोर देने की अपील की।

कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की भूमिका

राष्ट्रपति मुर्मू ने संविधान की भावना के अनुरूप कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका को मिलकर काम करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने समाज के कमजोर वर्गों के विकास के लिए अनेक कदम उठाए हैं। इन प्रयासों से लोगों का जीवन बेहतर हुआ है और उन्हें प्रगति के नए अवसर मिले हैं।

संविधान दिवस का यह उत्सव न केवल भारतीय लोकतंत्र के गौरवशाली इतिहास की याद दिलाता है, बल्कि यह हमें अपने कर्तव्यों और अधिकारों के प्रति सजग रहने के लिए प्रेरित करता है।

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