थैंक्सगिविंग की छुट्टियों से पहले अमेरिका में पेट्रोल भंडार में अप्रत्याशित बढ़ोतरी ने बाजार को चौंका दिया है। दुनिया के सबसे बड़े तेल उपभोक्ता देश में ईंधन की मांग को लेकर चिंताएं बढ़ने लगी हैं। इसके चलते गुरुवार को कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट देखी गई। ब्रेंट क्रूड फ्यूचर्स 0.1% यानी 4 सेंट घटकर 72.79 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया, जबकि डब्ल्यूटीआई क्रूड फ्यूचर्स 1 सेंट गिरकर 68.71 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया।
भंडार में अप्रत्याशित बढ़ोतरी से बाजार हैरान
यूएस एनर्जी इंफॉर्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन (EIA) की रिपोर्ट के मुताबिक, 22 नवंबर को समाप्त सप्ताह में तेल भंडार में 33 लाख बैरल की बढ़ोतरी हुई। जबकि विशेषज्ञों का अनुमान था कि भंडार में मामूली गिरावट आएगी। रायटर्स के सर्वे में विश्लेषकों ने तेल भंडार में 46,000 बैरल की कमी का पूर्वानुमान लगाया था। लेकिन EIA की रिपोर्ट ने इस उम्मीद को पूरी तरह उलट दिया। इस अप्रत्याशित वृद्धि ने अमेरिका में तेल की मांग को लेकर अनिश्चितता बढ़ा दी है।
इस साल अमेरिका और चीन जैसे बड़े उपभोक्ता देशों में ईंधन की मांग में कमी देखने को मिली है, जिसका असर तेल की कीमतों पर पड़ा है। हालांकि, OPEC+ के उत्पादन कटौती के फैसले ने कीमतों को ज्यादा गिरने से रोक दिया। OPEC+ में OPEC, रूस और अन्य सहयोगी देश शामिल हैं। समूह जनवरी में प्रस्तावित उत्पादन बढ़ोतरी को टालने पर विचार कर रहा है।
भारत के लिए कच्चे तेल की नरमी क्यों है फायदेमंद?
कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट भारत जैसे बड़े आयातक देशों के लिए अच्छी खबर है। तेल की कम कीमतों से आयात बिल में कमी आती है, जिससे व्यापार घाटा और विदेशी मुद्रा भंडार पर सकारात्मक असर पड़ता है। ईंधन सस्ता होने से उपभोक्ताओं की खरीद क्षमता बढ़ती है, जिससे अर्थव्यवस्था को रफ्तार मिलती है।
इजरायल और लेबनान के हिजबुल्लाह समूह के बीच हुए युद्धविराम से तेल की कीमतों पर दबाव बना है। मध्य-पूर्व से तेल सप्लाई बाधित होने की चिंता कुछ हद तक कम हुई है। हालांकि, बाजार के विशेषज्ञ मानते हैं कि यह विराम कब तक जारी रहेगा, इस पर अनिश्चितता बनी हुई है।
कुल मिलाकर, भंडार में वृद्धि और वैश्विक भू-राजनीतिक परिस्थितियों ने तेल बाजार की स्थिति को जटिल बना दिया है। आने वाले दिनों में OPEC+ के फैसले और वैश्विक मांग में बदलाव ही कीमतों की दिशा तय करेंगे।
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