Meta Wristband : कल्पना कीजिए कि आप बिना हाथ हिलाए, बिना स्क्रीन को छुए, सिर्फ सोचकर अपने फोन या कंप्यूटर को कंट्रोल कर सकें। जैसे ही आपके दिमाग में कोई आइडिया आए, डिवाइस वह काम खुद-ब-खुद कर दे। यह विज्ञान कथा नहीं, बल्कि मेटा (पहले फेसबुक) की नई टेक्नोलॉजी है, जो इस सपने को हकीकत बना रही है!
Meta Wristband : क्या है यह जादुई डिवाइस?
मेटा ने एक खास किस्म का रिस्टबैंड (कलाईबंद) विकसित किया है, जो इलेक्ट्रोमायोग्राफी (EMG) तकनीक पर काम करता है। यह बैंड आपकी मांसपेशियों में होने वाली छोटी-छोटी गतिविधियों और इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स को पढ़ता है। जब आप किसी काम को करने के बारे में सोचते हैं, जैसे मैसेज टाइप करना, वीडियो प्ले करना या गेम खेलना, तो आपके हाथों की नसें उस आदेश के लिए एक संकेत भेजती हैं।
यह बैंड उस संकेत को पकड़कर AI की मदद से उसे समझता है और आपके डिवाइस को निर्देश देता है। और हैरानी की बात यह है कि आपको हाथ हिलाने की भी जरूरत नहीं! बस दिमाग में इरादा करें, और डिवाइस अपना काम कर देगा।
Meta Wristband : कैसे काम करती है यह टेक्नोलॉजी?
मेटा की Reality Labs टीम ने इस डिवाइस को बनाने के लिए 10,000 से अधिक लोगों के मसल्स सिग्नल्स का डेटा इकट्ठा किया। फिर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग का इस्तेमाल कर इस डिवाइस को ट्रेनिंग दी गई, ताकि यह विभिन्न हाथों की हरकतों को समझ सके।
Imagine controlling your devices with a subtle hand or finger gesture. Our cutting-edge research turns intent and muscle signals into seamless computer control. This breakthrough wrist technology is redefining how we interact with computers—intuitive, precise, and ready for the… pic.twitter.com/2dXERZYqkY
— Meta (@Meta) July 23, 2025
इस खोज के पीछे मेटा के वैज्ञानिक पैट्रिक कैफोश का कहना है:
"हमारी टेक्नोलॉजी यूजर के इरादे को समझती है, उसके दिमाग के विचार नहीं। यह एक तरह से इंसान और मशीन के बीच की नई भाषा है।"
Meta Wristband : किसे होगा सबसे ज़्यादा फायदा?
- दिव्यांगों के लिए क्रांति: जिन लोगों के हाथ काम नहीं करते, या जिन्हें रीढ़ की हड्डी में चोट है, वे इस डिवाइस से बिना किसी फिजिकल छुए डिवाइस चला सकेंगे। कार्नेगी मेलन यूनिवर्सिटी में इस पर शोध चल रहा है।
- सामान्य यूजर्स: गेमिंग, मैसेजिंग और वर्चुअल रियलिटी (VR) के क्षेत्र में यह टेक्नोलॉजी नए अनुभव देगी।
- सर्जरी-मुक्त विकल्प: न्यूरालिंक जैसे ब्रेन इम्प्लांट की तुलना में यह पूरी तरह सुरक्षित है, क्योंकि इसमें शरीर में कुछ भी डालने की जरूरत नहीं।
Meta Wristband : क्या हैं चुनौतियां?
- अभी यह प्रोटोटाइप स्टेज में है और कमर्शियल रूप से उपलब्ध होने में समय लगेगा।
- प्राइवेसी चिंताएं: कुछ लोगों को डर है कि कहीं मेटा उनके न्यूरल सिग्नल्स को न पढ़ ले, लेकिन कंपनी का कहना है कि यह सिर्फ इरादे को समझता है, विचारों को नहीं।
Meta Wristband : भविष्य में क्या संभावनाएं हैं?
मेटा का यह प्रयोग मेटावर्स और AR/VR टेक्नोलॉजी के लिए एक बड़ा कदम है। भविष्य में यह आपके स्मार्टफोन, ऑगमेंटेड रियलिटी ग्लासेस और यहां तक कि घर के उपकरणों को भी कंट्रोल कर सकता है। जिस तरह टचस्क्रीन ने बटनों को बदल दिया, वैसे ही यह तकनीक टच और वॉयस कंट्रोल को भी पीछे छोड़ सकती है।
मेटा का यह रिस्टबैंड साइंस और टेक्नोलॉजी की दुनिया में एक बड़ी छलांग है। अगर यह सफल रहा, तो हमारे डिवाइस इस्तेमाल करने का तरीका हमेशा के लिए बदल जाएगा। चाहे वह गेमिंग हो, वर्चुअल मीटिंग्स हों, या फिर दिव्यांगों की सहायता, यह टेक्नोलॉजी एक नए युग की शुरुआत कर सकती है।
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