Manmohan Singh: कई पद पर रहते हुए मनमोहन सिंह ने देश की सेवा की है. फिर चाहे बतौर वित्त मंत्री हो या फिर प्रधानमंत्री हो. यह आज किसी से छुपा नहीं है कि 1991 के आर्थिक संकट से उन्होंने देश को किस तरह से निकाला था. इसके बारे में आज भी चर्चाएं होती रहती है, लेकिन आज हम उस दौर की बात कर रहे हैं, जब वह भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर थे.
इंदिरा गांधी ने राजनीति में कई ऐसे लोगों को शामिल किया जिन्होंने आगे चलकर देश की नीतियों पर काफी गहरा प्रभाव छोड़ा. फिर चाहे वह प्रणब मुखर्जी हो या फिर मनमोहन सिंह (Manmohan Singh). 1980 के दशक में आए मनमोहन सिंह को रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया का गवर्नर नियुक्त किया गया. इस दौरान उन्होंने देश की मौद्रिक नीति और बैंकिंग क्षेत्र में सुधार की नीव मजबूत कर दी थी.
Manmohan Singh: जब बैंक की स्थापना को लेकर हुआ टकराव
जब मनमोहन सिंह आरबीआई के गवर्नर थे तो उस दौरान वित्त मंत्री रहे प्रणब मुखर्जी से कई गंभीर मुद्दों पर उनके मतभेद होते रहे और इन्हीं में से एक मामला विदेशी बैंक बैंक आँफ क्रेडिट एंड कॉमर्स को भारत में कारोबार की अनुमति की मांग से जुड़ा था. ये वही बैंक था जिसका पाकिस्तान में करीब एक दशक पहले प्रचार हुआ था और यह बैंक चाहता था कि वह भारत में अपनी शाखाएं खोले. सरकार चाहती थी कि रिजर्व बैंक इस विदेशी बैंक को लाइसेंस दे.
वही मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) इसके खिलाफ थे जहां आरबीआई ने विदेशी बैंक के भारत आने के खिलाफ अपना रुख कर लिया. वहीं सरकार ने रिजर्व बैंक को निर्देश दिया था कि वह आवेदन को मंजूरी दे दे. इस मामले इसी बीच इंदिरा कैबिनेट को एक प्रस्ताव आया जिसमें रिजर्व बैंक की विदेशी बैंकों का लाइसेंस देने की ताकत को छीनने की बात कही गई थी, तब मनमोहन सिंह ने इसके विरोध में अपना इस्तीफा वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री को भेज दिया था.
किए कई सुधार
रिजर्व बैंक के गवर्नर का पद भारत की राजनीति और अर्थव्यवस्था में काफी ज्यादा सम्मान का पद होता है. अगर कुछ अहम सुधारो पर एक नजर डालें तो आर्थिक मामलों में अपनी शानदार समझ होने के चलते मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) भारत की बैंकिंग सेक्टर में कई कानूनी सुधार में अहम भूमिका निभाते नजर आए थे.
उन्होंने भारतीय रिजर्व बैंक कानून में एक पूरा चैप्टर जोड़ा और एक शहरी बैंक विभाग की भी स्थापना हुई. फिर गवर्नर के कार्यकाल के बाद 14 जनवरी 1985 को आरबीआई से योजना आयोग उन्हें भेज दिया गया और यह राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के करीब एक महीने बाद ही हुआ.
Read Also: Gold-Silver Price: 31 दिसंबर को गिरे सोने- चांदी के भाव, जाने आज क्या है 10 ग्राम गोल्ड का रेट