18 Jun, 2025
BY: Komalभारत की धरती हजारों सालों से औषधियों की खान रही है। साधारण सी दिखने वाली लेकिन असरदार जड़ी-बूटी- अर्कमूल, जिसे आम भाषा में अकौआ, अकौड़ा या Madar भी कहते हैं।
बहुत कम लोग जानते हैं कि यह जड़ी-बूटी न केवल बाहरी बीमारियों में, बल्कि आंतरिक विकारों, विषहरण और मानसिक शुद्धि में भी कमाल की है। अर्कमूल एक झाड़ीनुमा पौधा है, जिसका वैज्ञानिक नाम 'कैलोट्रोपिस गिगेंटिया' है और यह एपोसिनेसी परिवार से संबंधित है।
इसकी ऊंचाई 3-5 फीट होती है और तने या पत्ते को तोड़ने पर सफेद दूध निकलता है, जो औषधीय गुणों से भरपूर होता है। चरक संहिता अर्कमूल को पाचन और आंतरिक रोगों के लिए उपयोगी मानती है।
जबकि सुश्रुत संहिता इसे मुख्य रूप से रोगों और घावों से छुटकारा दिलाने में उपयोगी मानती है। कुछ शोधों में पाया गया है कि कैलोट्रोपिस के तत्वों में कैंसर रोधी गुण भी पाए गए हैं।
यह कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि को रोक सकता है। सुश्रुत संहिता में अर्कमूल के उपयोग से मुख्य रूप से घाव, अल्सर, सूजन, जहरीले कीड़े के काटने और सांप के काटने में मदद मिलती है।
अर्कमूल का दूध बवासीर के उपचार में उपयोग किया जाता है, यह सूजन को कम करता है और दर्द से राहत देता है। अस्थमा या सांस की समस्या होने पर मदार के फूलों का उपयोग सहायक माना जाता है।
सुश्रुत संहिता में इसके उपयोग के तरीके पर भी प्रकाश डाला गया है। चिकित्सा ग्रंथ के अनुसार, आक के फूलों को तोड़कर धूप में अच्छी तरह सुखाकर चूर्ण तैयार किया जाता है।
इस चूर्ण के सेवन से फेफड़ों के रोग, अस्थमा और कमजोरी जैसी समस्याओं को ठीक करने में मदद मिलती है। अगर आप दांत दर्द से पीड़ित हैं, तो अर्कमूल के दूध में रुई डुबोकर मसूड़ों पर लगाने से आपको दर्द से राहत मिल सकती है।
दांत दर्द के साथ-साथ यह त्वचा पर होने वाले छालों से भी राहत दिलाने का कारगर उपाय है। तांत्रिक और वैदिक परंपराओं में अर्क के पौधे को शिव का प्रतीक माना जाता है। इसकी जड़ को पवित्र करके ध्यान या जप में इस्तेमाल किया जाता है।
इसका दूध बहुत जहरीला होता है, इसे आंख, नाक या खुले घाव पर न लगाएं तथा गर्भवती महिलाएं, छोटे बच्चे या हृदय रोगी इसे डॉक्टर की सलाह के बिना न लें।
Thanks For Reading!