भारतीय रुपये की गिरावट का मुद्दा हमेशा चर्चा में रहता है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये की कमजोरी पर हर बार सवाल उठते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि 1947 में भारत के आज़ाद होने के समय रुपये की क्या स्थिति थी? साथ ही, रुपये और डॉलर में से कौन सी मुद्रा पुरानी है? आइए इन सवालों के जवाब विस्तार से जानते हैं।

भारतीय रुपये का इतिहास

भारतीय मुद्रा का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। 16वीं सदी में मुगल सम्राट अकबर ने भारतीय रुपये की नींव रखी। उन्होंने चांदी का सिक्का जारी किया, जिसे ‘रुपया’ कहा गया। यह भारतीय मुद्रा के मानकीकरण की दिशा में पहला बड़ा कदम था।

ब्रिटिश शासन के दौरान, 1835 में भारतीय रुपये को औपचारिक मान्यता मिली। ब्रिटिश सरकार ने इसे भारतीय उपमहाद्वीप में व्यापार और लेन-देन के लिए आधिकारिक मुद्रा बनाया। आज़ादी के बाद 15 अगस्त 1947 को भारतीय रुपये को नई पहचान मिली। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने रुपये की छपाई और प्रचलन का जिम्मा संभाला।

अमेरिकी डॉलर का सफर

अमेरिकी डॉलर की शुरुआत 1792 में हुई। इसे गोल्ड और सिल्वर के आधार पर जारी किया गया, जिसे ‘गोल्ड स्टैंडर्ड’ कहा गया। 20वीं सदी में, 1944 के ब्रेटन वुड्स समझौते ने डॉलर को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बना दिया। इस समझौते ने डॉलर को अन्य मुद्राओं के मुकाबले स्थिर रखा। हालांकि, 1971 में यह समझौता समाप्त हुआ, और डॉलर की विनिमय दर को तैरता हुआ छोड़ दिया गया।

1947 में डॉलर बनाम रुपया

आज़ादी के समय, 1 अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 4.76 रुपये की विनिमय दर थी। यह दर ब्रेटन वुड्स प्रणाली से निर्धारित थी। उस समय रुपये की स्थिति औपनिवेशिक शासन की विरासत का हिस्सा थी।

2024 तक का सफर: रुपया की कमजोरी क्यों?

7 दिसंबर 2024 तक, 1 अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया लगभग 84.65 रुपये तक पहुंच गया है। 78 सालों में रुपये की कीमत लगभग 95% तक गिर गई है। यह गिरावट मुद्रास्फीति, वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों और विदेशी मुद्रा की मांग व आपूर्ति जैसे कारकों से प्रभावित हुई है।

भारतीय रुपये और अमेरिकी डॉलर के इस लंबे सफर ने वैश्विक और स्थानीय आर्थिक सुधारों का गहरा असर देखा है। भविष्य में, रुपये की स्थिरता के लिए आर्थिक नीतियों को और मजबूत करने की आवश्यकता है।

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