India-UK Tread Deal पर मुहर लग गई है। यह ट्रेड डील भारतीय ऑटो इंडस्ट्री को जबरदस्त बूस्टर डोज देने का काम करेगी। इससे इंडस्ट्री को दोतरफा फायदा होने वाला है। इससे जहां ब्रिटेन में भारतीय कारों के पहुंचने का रास्ता साफ हो गया है, वहीं ब्रिटेन से आने वाली छोटी कारों पर अभी भी इंपोर्ट ड्यूटी लग रही है। आईए आपको बताते हैं कि इस ट्रेड डील से क्या फायदे होने वाले हैं।
भारत ने किया ये काम
India-UK Tread Deal में भारत ने शुरुआती तौर पर यूनाइटेड किंगडम के ऑटो एक्सपोर्टर्स के बड़े पेट्रोल-डीजल वाहनों व महंगे इलेक्ट्रिक वाहनों पर ही इंपोर्ट ड्यूटी में कमी की है, इससे यह बात साफ है कि छोटी और मिड साइज कारों के दम पर चलने वाली भारतीय ऑटो इंडस्ट्री पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा।
एक्सपर्ट्स की मानें तो भारत ने यूके को कुछ रियायतें तो जरूर दी हैं लेकिन करीब चार गुना ज्यादा मार्केट का एक्सेस हासिल कर लिया है। यह एक्सेस इलेक्ट्रिक व्हीकल सेगमेंट को बूस्ट करने का काम करेगा। अब भारतीय ऑटोमोबाइल कंपनियां भी प्रीमियम और इलेक्ट्रिक वहां सेगमेंट में निर्यात को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकती हैं।
India-UK Tread Deal: कोटा आधारित दी है छूट
India-UK Tread Deal में भारत ने यूनाइटेड किंगडम को ऑटोमोबाइल सेक्टर में चरण वार और कोटा आधारित छूट के साथ रियायत देने पर हामी भारी है। शुरुआती तौर पर यह केवल बड़ी और महंगी कारों पर ही लागू होगा। पहले चरण में 5 सालों के भीतर इलेक्ट्रिक हाइब्रिड या हाइड्रोजन से चलने वाले वाहनों को कोई रियायत नहीं दी गई है। सरकार के इस कदम का मतलब साफ है कि वह देश की ऑटो इंडस्ट्री को सेफ रखना चाहती है।
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महंगी इलेक्ट्रिक कारों पर छूट का नहीं पड़ेगा असर
Trade Deal में भारत ने इलेक्ट्रिक वाहनों को छठवें साल से रियायत देने का फैसला किया है और यह राहत केवल लग्जरी मॉडलों को ही दी जाएगी यानी जिनकी कीमत 80000 पाउंड यानी करीब 93 लाख से ज्यादा होगी। 40000 पाउंड यानी करीब 46 लाख कम कीमत में आने वाले इलेक्ट्रिक वाहनों को बाजार में प्रवेश की कोई छूट नहीं दी गई है।
सरकार इसके जरिए देश के इलेक्ट्रिक व्हीकल मार्केट को सेफ रखना चाहती है। भारत की तैयारी आने वाले सालों में इलेक्ट्रिक व्हीकल सेगमेंट में ग्लोबल लीडर बनने की है। ऐसे में यह ट्रेड डील काफी अहम है।
इसके साथ ही बैलेंस बनाए रखने के लिए छठवें साल से जिन इलेक्ट्रिक वाहनों को रियायत दी जाएगी। उनके लिए उतने ही पेट्रोल और डीजल वाहनों की संख्या काम कर दी जाएगी, इस तरह से कुल मिलाकर सरकार की मंशा है कि रियायती शुल्क के तहत आयात किए जाने वाले वाहनों की संख्या 15 साल में 37,000 यूनिट से ज्यादा ना हो।
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