12 Jun, 2025
BY: Komalहमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में पानी पीने के समय को बहुत महत्व दिया गया है। चाणक्य नीति में भी कहा गया है- 'अजीर्णे भेषजं वारि, जीर्णे वारि बलप्रदम्। भोजने चामृतं वारि, भोजनान्ते विषप्रदम्' यानी अपच के दौरान पानी दवा की तरह काम करता है।
जब खाना अच्छी तरह पच जाता है, तो पानी ताकत देता है। खाना खाते समय थोड़ा पानी पीना अमृत के समान माना जाता है, क्योंकि यह भोजन को निगलने और पचाने में मदद करता है।
लेकिन खाना खाने के तुरंत बाद पानी पीना जहर से कम नहीं है। आयुर्वेदिक विशेषज्ञों और ग्रंथों के अनुसार, जब हम खाना खाते हैं, तो वह पेट के अंदर एक खास जगह पर जाता है, जिसे 'जठर' यानी "पेट" कहते हैं।
यह हमारे शरीर के बीचों-बीच, नाभि के पास बाईं ओर होता है। पेट में हल्की आग होती है, जिसे हम पाचन की आग कह सकते हैं। यह आग भोजन को पचाने में मदद करती है।
जब हमें भूख लगती है, तो दरअसल यही अग्नि हमें संकेत देती है कि शरीर को अब ऊर्जा की जरूरत है। जैसे कार में पेट्रोल खत्म होने पर वह रिजर्व में आ जाता है, वैसे ही शरीर भी भूख के जरिए हमें बताता है कि उसे अब भोजन की जरूरत है।
आपने महसूस किया होगा कि जब हमें बहुत भूख लगती है तो कोई भी खाना हमें स्वादिष्ट लगता है और आसानी से पच भी जाता है। पेट में मौजूद अग्नि करीब एक घंटे तक भोजन को पचाने का काम करती है।
अगर इस एक घंटे के अंदर हम फिर से कुछ और खा लेते हैं या बहुत सारा ठंडा पानी पी लेते हैं तो यह अग्नि बुझ जाती है। जैसे जलती आग पर अचानक पानी डाल दिया जाए तो पेट में मौजूद अग्नि भी ठंडी हो जाती है।
इसका असर यह होता है कि खाना ठीक से पच नहीं पाता और कई तरह की बीमारियां शरीर को प्रभावित करने लगती हैं, इसलिए खाना खाने के एक घंटे बाद तक कुछ भी न खाएं और न ही पानी पिएं।
इससे जठराग्नि यानी पेट में मौजूद अग्नि आराम से अपना काम कर पाती है और खाना अच्छे से पच जाता है और शरीर को ताकत मिलती है।
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