नई दिल्ली: Iran–Israel के बीच चल रहे युद्ध और इसमें अमेरिका के हस्तक्षेप के कारण मध्य पूर्व में तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। इस तनाव का सीधा असर Crude Oil Price में उछाल के रूप में देखा जा सकता है। मध्य पूर्व में तनाव के कारण आज कच्चा तेल 77 डॉलर प्रति बैरल के स्तर को पार कर गया। भारतीय समय के अनुसार शाम 5 बजे ब्रेंट क्रूड 77.77 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर कारोबार कर रहा था।

Crude Oil Price में उछाल से पूरी दुनिया पर असर

इसी तरह वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) क्रूड 76 डॉलर के स्तर को पार कर 76.38 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंच गया था। International market में Crude Oil Price में उछाल का असर घरेलू बाजार में भी दिख रहा है।

आज मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (MCX) पर कच्चा तेल 6,450 रुपये प्रति बैरल के स्तर को पार कर गया। आज MCX पर कच्चा तेल 26 रुपये की तेजी के साथ 6,360 रुपये प्रति बैरल पर खुला। कुछ ही देर बाद इसकी कीमत बढ़कर 6,467 रुपये प्रति बैरल के उच्च स्तर पर पहुंच गई। हालांकि, बाद में इसकी कीमत में थोड़ी गिरावट भी आई।

अमेरिका की चेतावनी ने बढ़ाई टेंशन

कमोडिटी बाजार के जानकारों का कहना है कि Iran–Israel संघर्ष के कारण International market में Crude Oil की आपूर्ति में कमी आने की संभावना है। खासकर, जिस तरह से अमेरिका ने ईरान को आत्मसमर्पण करने की चेतावनी दी है, उससे इस बात की संभावना है कि अमेरिका की ओर से ईरान पर हमला भी किया जा सकता है। दावा किया जा रहा है कि अमेरिका ईरान के परमाणु स्थलों को निशाना बनाने की कोशिश कर सकता है।

भारत को आएगी सबसे ज्यादा परेशानी

खुराना सिक्योरिटीज एंड फाइनेंशियल सर्विसेज के सीईओ रवि चंदर खुराना का कहना है कि मध्य पूर्व में तनाव के कारण न केवल International market में Crude Oil Price पर दबाव पड़ा है, बल्कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती न करने के फैसले से भी Crude Oil Price को सपोर्ट मिला है।

अमेरिका में Crude Oil का भंडार कम होने से भी कीमत में तेजी आई है। इसके कारण ब्रेंट क्रूड और डब्ल्यूटीआई क्रूड के बीच का अंतर भी कम हुआ है। अब यह अंतर एक से दो डॉलर प्रति बैरल रह गया है, जबकि कुछ दिन पहले तक यह अंतर चार से छह डॉलर प्रति बैरल हुआ करता था।

रवि चंदर खुराना कहते हैं कि अगर मध्य पूर्व में तनाव कम नहीं हुआ तो आने वाले दिनों में Crude Oil Price 85 से 90 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंच सकती है। अगर ऐसा हुआ तो भारत जैसे देश को, जो अपनी ज़रूरत का 80 फ़ीसदी से ज़्यादा कच्चा तेल आयात करता है, बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।

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