Court-State Vs Nobody : ओटीटी पर हाल ही में आई साउथ की कोर्टरूम ड्रामा फिल्म Court: State Vs Nobody ने दर्शकों को अपनी सस्पेंस से बांधे रखा है। इमोशनल और रियलिस्टिक कहानी के चलते यह फिल्म सोशल मीडिया पर खूब चर्चित हो रही है। IMDb पर 7.9 की रेटिंग और भारत की टॉप 10 ओटीटी फिल्मों में शामिल होकर यह साबित करती है कि सीमित थिएटर रिलीज़ के बावजूद दर्शकों का दिल जीतना नामुमकिन नहीं।

Court-State Vs Nobody : ओटीटी पर रिलीज़ के बाद धमाका

Court-State Vs Nobody नाम की इस फिल्म ने 11 अप्रैल 2025 को नेटफ्लिक्स पर दस्तक दी, और देखते ही देखते यह दर्शकों की पसंदीदा फिल्मों में शुमार हो गई। थिएटर में भले ही इसे सीमित स्क्रीन पर दिखाया गया था, लेकिन ओटीटी पर आते ही दर्शकों की प्रतिक्रिया ज़बरदस्त रही। फिल्म ने अपनी यथार्थवादी कहानी और सधे हुए प्रदर्शन के जरिए सबका ध्यान खींचा है।

सच कहें तो, ऐसी कहानी लंबे समय बाद देखने को मिली है जो मनोरंजन के साथ-साथ समाज को भी आईना दिखाने का काम करती है।

Court-State Vs Nobody : प्यार, कानून और समाज के बीच फंसी एक मासूम कहानी

फिल्म की कहानी एक युवा प्रेमी जोड़े पर आधारित है, जिनकी मासूम मोहब्बत अचानक अपराध के घेरे में आ जाती है। लड़की के परिवार द्वारा लड़के पर POCSO एक्ट के तहत केस दर्ज करवा देने के बाद, पूरी कहानी कोर्टरूम में पहुंच जाती है। यहां शुरू होता है असली खेल – सच्चाई बनाम सामाजिक धारणा, कानून बनाम भावना।

अब देखना ये है कि क्या न्याय व्यवस्था सही निर्णय तक पहुंच पाती है, या फिर रिश्तों की परिभाषा अदालत की जटिलताओं में खो जाती है।

Court-State Vs Nobody : अभिनय और निर्देशन: फिल्म की जान

फिल्म में प्रियदर्शि पुलिसकोंडा ने वकील के किरदार को बखूबी निभाया है। उनके तीखे डायलॉग्स और सधा हुआ अभिनय दर्शकों को कहानी में बांधे रखता है। वहीं हर्ष रोशन, श्रीदेवी पल्ला और हिवाजी ने भी अपनी भूमिकाओं में ईमानदारी दिखाई है, जिससे हर पात्र ज़िंदा सा लगता है।

निर्देशक राम जगदीश ने जिस तरह से इस संवेदनशील मुद्दे को पर्दे पर उतारा है, वह काबिले-तारीफ है। उन्होंने कहानी को बहुत ही रियलिस्टिक टोन में पेश किया है, बिना किसी ड्रामेबाज़ी के।

Court-State Vs Nobody : फिल्म का सामाजिक असर

अगर आपने Pink, Mulk या Jolly LLB जैसी फिल्में देखी हैं, तो Court: State Vs Nobody आपके लिए एक जरूरी फिल्म है। यह न केवल मनोरंजन करती है, बल्कि सामाजिक मुद्दों पर सोचने के लिए मजबूर भी करती है। फिल्म दिखाती है कि कानून सिर्फ किताबों में नहीं, असल ज़िंदगी में कितनी जटिल हो सकता है – खासकर जब उसमें भावना, परिवार और समाज की सोच भी शामिल हो।

यह फिल्म एक तरह से मौजूदा सामाजिक व्यवस्थाओं पर सवाल खड़ा करती है – वो भी बिना ज़्यादा भाषण दिए।

फिल्म की उपलब्धियां और लोकप्रियता
IMDb रेटिंग: 7.9

बॉक्स ऑफिस कलेक्शन: 57 करोड़

नेटफ्लिक्स पर टॉप 10 भारतीय फिल्मों में शामिल

सोशल मीडिया पर ज़बरदस्त चर्चा

कुछ फिल्मों में सच्चाई की परत इतनी गहराई से बुनी होती है कि वो देखने के बाद दिमाग से निकलती ही नहीं – ये उन्हीं में से एक है।

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