AI Video Threat : आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) तकनीक जहां एक ओर हमारी दुनिया को नए आयाम दे रही है, वहीं दूसरी ओर इसके दुरुपयोग से फर्जी वीडियो का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। सोशल मीडिया पर ऐसे AI-जनरेटेड वीडियो अब इतने यथार्थवादी लगते हैं कि असली और नकली में भेद कर पाना मुश्किल हो गया है, जिससे आम यूज़र आसानी से गुमराह हो रहे हैं।
ये वीडियो तेज़ी से वायरल होते हैं और मनोरंजन के नाम पर शुरू होकर सामाजिक या राजनीतिक एजेंडा फैलाने का माध्यम भी बन सकते हैं। इस खतरे से निपटने के लिए सख्त नियमों, तकनीकी समाधानों और सबसे बढ़कर यूज़र्स की जागरूकता की आवश्यकता है।
AI Video Threat : फर्जी AI वीडियो का खतरनाक खेल: क्या है पूरा मामला?
AI तकनीक ने बेशक हमारी दुनिया को काफी बदल दिया है, लेकिन इसके साथ ही कुछ नए और गंभीर खतरे भी सामने आए हैं। आजकल सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो धड़ल्ले से वायरल हो रहे हैं, जिन्हें देखकर पहली नज़र में यही लगता है, 'क्या ये वाकई सच है?' जब असली और नकली के बीच का अंतर मिटने लगे, तो समझ लीजिए खतरा बढ़ गया है।
AI तकनीक से बनाए गए ऐसे वीडियो अब इतने जीवंत और वास्तविक लगते हैं कि आम इंसान उनके झांसे में बड़ी आसानी से आ जाता है, और यही चीज़ इसे और भी ज़्यादा खतरनाक बना देती है।
हाल ही में एक वीडियो तेज़ी से वायरल हुआ था, जिसमें गुजरात की सड़क पर सोए हुए एक व्यक्ति को एक शेर सूंघकर आगे बढ़ जाता है। इस वीडियो को देखकर हर कोई हैरान था, पर जब इसकी सच्चाई सामने आई, तो पता चला कि यह वीडियो AI तकनीक से बनाया गया था। यह महज़ एक यूट्यूब चैनल का कंटेंट था, जिसने अपने बायो में छोटे अक्षरों में लिखा था कि यह "AI-assisted designs" है।
यानी यह वीडियो पूरी तरह से कंप्यूटर द्वारा तैयार किया गया था। अब देखना ये है कि ऐसे मामलों में कानून कब तक सख्त होता है।
AI Video Threat : AI वीडियो इतनी तेज़ी से क्यों फैलते हैं, मनोरंजन या धोखा?
AI वीडियो की सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि वे बेहद नाटकीय (ड्रामेटिक) होते हैं। ऐसे वीडियो लोगों को चौंकाते हैं और सोशल मीडिया पर तुरंत लोगों का ध्यान खींच लेते हैं। इंस्टाग्राम, यूट्यूब, और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म्स के एल्गोरिदम भी ऐसे वीडियो को ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचाते हैं, क्योंकि इन्हें देखकर यूज़र्स ऐप पर अधिक समय बिताते हैं। सच कहूं तो, यह एक तरह से प्लेटफॉर्म्स के लिए भी फायदे का सौदा होता है, भले ही कंटेंट की प्रामाणिकता संदिग्ध हो।
आमतौर पर, लगभग 90% AI वीडियो केवल मनोरंजन और हंसी-मज़ाक के लिए ही बनाए जाते हैं। लेकिन, असली खतरा तब शुरू होता है जब इन वीडियो का इस्तेमाल किसी सामाजिक या राजनीतिक एजेंडा को फैलाने के लिए किया जाता है। ऐसे में, मनोरंजन की आड़ में लोगों को गुमराह करना बहुत आसान हो जाता है, और यही इसका सबसे डरावना पहलू है।
AI Video Threat : AI वीडियो को पहचानना क्यों हो रहा मुश्किल और क्या है समाधान?
आजकल AI वीडियो इतने परफेक्शन के साथ बनाए जा रहे हैं कि असली और नकली का फर्क करना वाकई मुश्किल हो गया है। कई बार तो खुद एक्सपर्ट्स भी धोखा खा जाते हैं। ऐसे में, एक आम यूज़र के लिए सच-झूठ को पहचानना और भी ज़्यादा चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म अब सिर्फ 'हानिकारक' कंटेंट को हटाते हैं, लेकिन वे हर AI वीडियो को चिह्नित (लेबल) नहीं कर पाते कि यह AI द्वारा जनरेटेड है।
आजकल तो बच्चे, स्टूडेंट्स, और यहाँ तक कि कुछ सरकारी संस्थाएं भी AI टूल्स का उपयोग करके फेक वीडियो बना रही हैं। कुछ तो सिर्फ वायरल होने के लिए ऐसा करते हैं, जबकि कुछ जानबूझकर लोगों को गुमराह करने के इरादे से ऐसे वीडियो बनाते हैं।
AI वीडियो के इस बढ़ते खतरे को देखते हुए, अब सख्त नियमों और तकनीकी उपायों की बेहद ज़रूरत है। एक्सपर्ट्स सुझाव देते हैं कि वीडियो अपलोड करते समय उसके वेरिफिकेशन की जांच करने वाली तकनीकों, जैसे C2PA (Coalition for Content Provenance and Authenticity) जैसे टूल्स को अनिवार्य किया जाना चाहिए। साथ ही, आम यूज़र्स को भी जागरूक होना पड़ेगा।
AI Video Threat : सावधान रहें, सोच-समझकर शेयर करें
अब यह बहुत ज़रूरी हो गया है कि हम सोशल मीडिया पर किसी भी वीडियो को देखने के बाद तुरंत उस पर भरोसा न करें। खुद से पूछें:
क्या यह चीज़ असल में हो सकती है?
क्या किसी भरोसेमंद न्यूज़ चैनल या माध्यम ने इसकी पुष्टि की है?
क्या इस वीडियो का स्रोत (सोर्स) स्पष्ट और विश्वसनीय है?
अगर इन सवालों का जवाब 'नहीं' है, तो उसे शेयर करने से बचें। वरना, आप भी जाने-अनजाने में किसी फेक खबर को फैलाने का हिस्सा बन सकते हैं, और यह हम सभी के लिए एक बड़ी चुनौती है।
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